श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥ धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥ ब्रह्म – कुल – वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट – वेषं, विभुं, वेदपारं । साधु संत के तुम रखवारे।। https://connerhusxi.wikibuysell.com/942867/a_simple_key_for_shiv_chalisa_lyrics_in_bengali_unveiled